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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २७ कलश. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाइ गाइरे ए जिनवर चोवीशी गाइ. अन्तर अनुभव योगे रचना, जिनआणाथी बनाइरें. ए जिनवर, जिन भक्तिथी शक्ति प्रगटे, मगटे शुद्ध समाधि ए जि. २ ए जि. ३ ए जि. ४ मिथ्या मोहक्षये समकित गुण, नासे चित्तनी आधिरे. ए जि. १ जिन गुणना उपयोगे निजगुण, प्रगटे अनुभव साचो; तिरोभावनो आविर्भाव छे, प्रेमघरी त्यां राचोरे. अनेकान्तनयज्ञान प्रतापे, पंचाचारनी शुद्धि; उपशम क्षयोपशमने क्षायिक, भावे प्रगटे रुद्धिरे. प्रभु गुण गावे भावना भावे, नागकेतु परे मुक्ति शुद्ध रमणता भाव पूजा छे, सालंबननी युक्तिरे. सालंबन योगी जिन ध्याने, निरालंबन थावे; कारण कार्यपणुं त्यां जाणो, ज्ञानी हृदयमां भावेरे ए जि . ५ जिन भक्ति निज शक्ति वधारे, शुभ उपयोगना दावे; शुद्धोपयोगे सहेजे आवे, स्याद्वादी मन भावेरे. गाम डभोई यशोविजय गुरु, चरणनी यात्रा कीधी; उपाध्यायनी देरीमां रचना, पूर्ण चोवीशीनी सिद्धिरे, ए जि . ७ उपाध्याय गुरु चरण पसाये, भक्ति रंग उर धारी; भावपूजा जिनवरनी करतां, जयजय मंगलकारीरे. सम्बत ओगणिश पांसठ साळे, फाल्गुन पूर्णिमा सारी; रविवार दिन चढते पहोरे, पूर्ण रची जयकारीरे. लोढण पार्श्व जिनेश्वर प्रेमे, जे भणशे नरनारी; बुद्धिसागर पग पग मंगल, पामे संघ निर्धारीरे. ए जि. ६ ए जि. ८ ए जि. ९ ए जि. १० For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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