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श्री संभवनाथ स्तवनम्.
देखो गति दैवनीरे-ए राग. संभवजिन तारशोरे, तारशो त्रिभुवननाथ संभव जिन तारशोरे.
निमित्त पुष्टालबनेरे, साध्यनी सिद्धि करायः उपादाननी शुद्धतारे, निमित्त विना नहि थाय. संभष. १ द्रव्य क्षेत्र काल भावथीरे, निमित्तना बहु भेद; ज्ञान दर्शन चारित्रनारे, निमित्त टाळे खेद. संभव. २ शुद्धदेव गुरु हेतुछेरे, उपादान करें शुद्धिः उपादान अभिनछेरे, कार्यथी जाणो बुद्ध. संभव. ३ कार्य द्रव्यपी भिन्नछरे, निमित्त हेतु व्यवहार; शुद्धादिक षड भेदछेरे, व्यवहार नयना धार. संभव. ४ भित्र निमित्त पण कार्यमारे, उपादान करे पुष्टि; निमित्त वण उपादानथीरे, थाय न साध्यनी सृष्टि.संभव. ५ पुष्टालंबन जिनविभुरे, आदर्यो मन धरी भाव, उपादाननी शुद्धिमारे, बनशे शुद्ध बनाव. संभव. ६ त्रिकरण योगथी आदर्यो रे, मन धरी साध्यनी दृष्टि बुद्धिसागर सुख लहरे, पामी अनुभव सृष्टि. संभव. ७
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