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सात क्षेत्रनो रास सं. १३२७ नी सालमां गुर्जर भाषामां रचायो छे. बुद्धि प्रमाणे सुधारो कर्यो छे. मूल प्रति प्रमाणे मूल छपाव्यो छे, अने तेमां कोइ ठेकाणे शब्दो सुधार्या छे. फुटनोट पण बुद्धि प्रमाणे यथाशक्ति करी छे. तेमां दोष होय तो पंडितो सुधारशो, अने आ रास संबंधी गुर्जर भाषाना पंडितो शोध करशे तो आ रासने सारी स्थिति उपर मूकी शकशे. एम आशा रखाय छे शुभे यथाशक्ति यतनीयं ए न्याय अनुसरी प्रयत्न कर्यो छे. जिनमंदिर, जीर्णोद्धार, साधु, साधवी, श्रावक, श्राविका, ज्ञान, आ सात क्षेत्र जाणवतं.
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अथ श्री यशोविजयवाचककृत. ब्रह्मगीता.
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शोधक मुनि. बुद्धिसागर.
दुहा.
समय सरसती विश्व माता, होये कविराज जस ध्यान ध्याता; करिय रंगरसभरि ब्रह्मगीता, वरणवुं जंबु गुण जग वदीता. १ राग फाग ब्रह्मचारी सिर सेहरो, ब्रह्म मनोहर ज्ञान; ब्रह्मवतीमांहि सुंदर, ब्रह्म धुरंधर ध्यान.
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