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२३५ याते किरिया आतमा, तीन काल असंबंध, धर्मि अपने धर्मकुं न, तजे तीर्नु काल आत्म ज्ञान गुण नित्यजे, जड किरियाकी चाल. प्रकृति पुरुषकीजोड हे, सदा अनादि स्वभाव भवस्थिति परिपाकते, शुद्धातम सद्भाव. शुद्धातम सद्भावता, शुद्ध भाव संयोग; भाव शुद्धकी सिद्ध ते, पाक काल परिभोग. काल पाक कारण मीले, किरिया कछु न काम; पातन किरिया बीन पडे, बाल दसन अभिराम. काळ पाककी सिद्ध ते, सहज सिद्ध के जाय; बीन वरषा फुले फळे, ज्यु वसंत वनराय' भव परिणत परिपाक बिन, भाव शुद्ध नही होय. मुनि करणी कर नरक गति, कुरड बकुरड दोय. क्रिया उथापी सर्वथा, वंछक किरिया चार; ये वंछक लक्षण रहित, सो सब शुद्धाचार. निश्चय सिद्ध जोलुं नहीं, व्यवहारे जियमेल जोलुं पिय फरसे नहीं, तब गुडीया मुखेल. निश्चे हुंति सिद्ध नहीं, विवहारे दे छोड। एक पतंग आकाशमें, फीर दोरीदे तोड. जोलुं भाव न शुद्धता, तोलुं किरिया खेल; पाणी गोलु पीलहे, तोलु नीकसे तेल. ज्ञान धरो किरिया करो, मन शुद्ध भावो भाव; तो आतममें संपजे, आतम शुद्ध स्वभाव. जोलु कारिज सिद्ध नहीं, तोलु उद्यम खेद घट कारजकी सिद्धते, उद्यम खेद निषेध.
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