________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२३३ श्री ज्ञानसारकृत भावषदत्रिंशिका.
दुहा. क्रिया अशुद्धता कछु नही, भाव अशुद्ध अशेष, मर सत्तम नरके गयो, तंडुल मच्छ विशेष. भाव शुद्धता जो भइ, कहा क्रिया को चार; द्रढमहार मुगवे गयो, हत्या कीनी च्यार. साधु क्रिया कबु नहि करी, रुषभ देवकी माय; भाव शुद्धथी सिद्धते, सिद्ध अनंत समाय. साठ सहस वरसे करी, किरिया अतिहि अशुद्धा भरत आरीसा भुवनमें, भावशुद्धतें सिद. नमुकारसी व्रत नही, करतो कूर आहार; भावशुद्धतें सिद्ध ते, कूरगड अनगार. भावक्रिया अविअशुद्ध ते, मेल्यो नरक समाज, भावशुदतें सिद्ध के, प्रसन्नचंद रुपिराज. केवल शी करणी करे, अभव्य लिंग संपन्न येगंठी भेदे नहीं, भावशुद्धतें शून्य. पूर्व कोडी देसोनता, क्रिया कठीन जन कीन; कुरड बकुरड नरक गतिः, अशुद्धभावते लीन. वंश खेल किरिया करी, साधु क्रिया नही लेस; इलापुत्र केवल घरे, कारण भाव विशेष. चरण क्रमण किरिया करी, गुरुकुं खंध चढाय; भाव शुद्ध केवल भजे, नव दक्षित मुनिराय. कपिल दुमक अति लोभ वश, लालचमां लयलीन शुद्ध भाव तबही भज्यो, आतम पदवी लीन.
For Private And Personal Use Only