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२३० सोनइया नविजाए गण्या, रूपाराल तणी नही मणा. मोड्यो मोती तिहां बहु मूल, मानुं ज्याय लतार्नु फूल पासे मांडी मरकत हारी, ते सोहे अलिकुल अनुहारि. लाल कांति पसरे तिहां सार, भूमि लहे लाली बाजार; मानु आवि कमला रंगि, तास चरण अलतानइ संग. रयण पारखि परखी पासि, करे रयणनी मोटी रासि; परखे नाणां नाणावटी, करें रेंड जिम मुरगिरि तटी. विविध देस अंबर अनुकुल, दोसि विस्तारे पटकुल; चीन मसज्जरनें जर बाफ, जीपे रवि शशिकर ओ साफ. सोवन तंतु खचित पामरी, जे पासें भीका भामरी; मांगरो हणगिरिना कति, ते जोतां पहुंचे मन खंति. जिमवसंत फूले मणीआर, मणि माला मंडइ मणीभार; तेल फूलेल मुरहि आधरइ, तस सुवास अंबरि विस्तरे. कस्तुरी आकुल तोलंत, सौरत निश्चल अलि गुजंत; नवि जाणे तिहां लीनो लोक, सोर जोर करतें जन थोक. केसर छवि अगनि तनु धरी, मानुं धीज कस्तुरी करी: टाली नीच घणा निशंक, तो आदरिइ जांगनि कलंक. अंबर चंदन अगर कपुर, गर्मित धरणी परिमलपूर; मान ते भारे नविफरे, अलि गुंजित आनंदित करें. घणां वसाणांनो विस्तार, ते कहेता नवि लाभे पार; मुरलो कंइ पणि न मिलई जेह, ते लहिं तिहां वस्तु छेह. १२ पक्षेण मे विस्तार, दरिआ समगाजइ बाजार; तिहां व्यापार कया अति घणा, मुलि लाम हुआ सो गुणा. १३ लोक थोक जिम वैलि भराय, एक एकनां हृदय दलाई; तर्या वसाणे निज निज जिहांज, कीपो घर आव्यानो साज.१४
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