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भंभर भोली टोली मिलि मिलि गावत गीत; दामिनी परि चमकतीरे कामिनी देखे सनूर, भाल तिलक मिसि विभ्रम जीवित मदन अंकुर ॥ ५२ ॥ दुहा. देखीया राय राणा सतेजह, ऋद्धिनो पार नहिं हुआ तेह भूप निज सदन पुहतो उल्लास, भीलने दिद्ध सनमुख अवास ॥५३॥ चालि.
भोजन शयन आच्छादन गंध विलेपन अंग, खबर लीए नृप तेहनी नव नव केलवे रंग; आधे बोले ते सवी करे, मनि घरे तेहजे काज, कचमिस अपयश ते गणे, जे नवि दीधुं राज. ॥ ५४ ॥ दुहा. दीवस सुख मानतां तासवीता, केतला रंग रमतां विचिताः एकदा आवीओ जलद काल, पंथिजन हृदयमां देतफाल. ॥५५॥ चालि.
कृत मुनिशम परिहारा हारावली दिस भाग, प्रकटित मोर किंगारा विरचित दारा राग;
विरहणि मन अंगारा धाराधर जलधार, वरषत निरखित उपनो तस मनमांहि विकार ॥५६॥
दुहा. सांभर्या दिवसगिरि भूमि फिरतां, देखतां ठाम नीझरण झरतां; सांभली मोर किंगार करतां, सुख लह्यां नीपस्युं सीस धरतां ॥ ५७ ॥ चालि. जन्म भूमि ते सांभरी रोयो करी पोकार, धाइ आव्यो नृप कहे ते, तुजने कवण प्रकार;
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