________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
,
१३७
पूर्णस्वरूपी षट्कारकमय, पूर्णानन्द विलासीरे; हेजी. तिरोभाव पण पूर्णमयीते, आविर्भाव प्रकाशीरे. हेजी. नामरूपथी न्यारो प्यारो, स्थिरोपयोगी भासुंरे हेजी; हुं तुं व्यवहारे उच्चरतुं, लोकालोक प्रकारे. हेजो. जेवो हुं तेवा सहु आतप कोने दउ साचाशीरे; हेजी. बुद्धिसागर परम प्रभुमय, घटमां गंगा काशीरे. हेजी.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सर्व स्वात्मवशं सुखं ॥
थाळ राग
स्वाश्रयना करनारारे, साधु सहु सुखी; पराश्रयी नरनारीरे, जगमां बहु दुःखी. स्वाश्रय सुखनी क्यारी, स्वाश्रयनी बलिहारी; स्वाश्रय धर्म विहारीरे, पराश्रयिजगजीवो, पाडे छे बहु रीत्रो; स्वाश्रयी जगमां दीवोरे,
परवश जगमां प्राणी, दुःखी छे रंकने राणी; स्वाश्रय सुखनी खाणीरे,
परवशता जेणे धारी, मायाना ते भिखारी;
स्याश्रयता जयकारीरें,
मायामां दुःखड धारी, चेतोने नरने नारी; बुद्धिसागर सुखकारीरे,
For Private And Personal Use Only
झळ ४
झळ. ५
झळ, ६
साधु. १
साधु. २
साधु. ३
साधु, ४
साधु. ५