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वित्त सत्ता ज्ञान जेर्नु परोपकारी नहि थयु, जननी भारे मारी जन्मी जीवन निष्फल सहु गयु. वेश्या नचवी करे धूमाडो धननो भारे, वेश्या संगी तरे अरे केम परने तारे पदवी पुच्छो माटे धननो नाश करे छे, परोपकारिधर्म विना नहि ठाम ठरे छे; रासभ उपर कस्तुरी घुण मूढ पासे धन अहो, बुद्धिसागर सत्य समजी परोपकारी थइ रहो.
समाधि. अजपा जापे सुरता चाली. ए राग. सहश्रकमलदलपर श्री प्रभुजी, बेठा कृष्ण जिनवर देवा; असंख्यप्रदेशे आसन पूर्यु, झळझळ ज्योतिनी सेवा. सहश्र. १ ब्रह्मरन्ध्रमा ब्रह्मानन्दी, उलटवाटथी चढी आयो; हंसराम सुरता सीतानी, साथे सुखडां बहु पायो. सहश्र. २ रत्नत्रयी लक्ष्मीनी साथे, चेतन विष्णु रमत रमे; चौद भुवनना स्वामी साचा, अनुभवामृत खूब जमे. सहश्र. १ पिंड अने ब्रह्मांड जैक्यता, आत्मभावना सर्व ठरी; अनुभवानंद सागर प्रगटयो, उलट आंख देख्यो उतरी. सहश्र. ४ स्यावाद सत्तामय चेतन, सातनये जाणे योगी; पदर्शन सागरने वलोवी, अमृत चाखे गुणभोगी. सहश्र. ५ शुद्ध समाधि योगे प्रगटे, केवलज्ञान महाज्योति; बुद्धिसागर विष्णु पोते, लोकालोक सहु विष्णोति. सहश्र.६
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