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१२६ धन्य धन्य ते नर जगत्मां भलं करे शुभ टेकथी, बुद्धिसागर धन्य मानव वर्ते जेह विवेकथी.
उत्तमजाति
छप्पय छंद. उत्तम तेनी जात मधुरी वाणी बोले, उत्तम तेनी जाति अन्यनां मर्म न खोले; उत्तम तेनी जात पडया पर पाद न मारे, उत्तम तेनी जात बोलीने कदी न हारे; जाति उत्तम ते जनोनी दोषीना दोषो हरे, अभक्ष्यनुं भक्षण करे नहि स्वार्थ माया परिहरे. उत्तम तेनी जाति दीनता दिल न राखे, परनी निंदा कलंक वचनो कदी न भाखे; उत्तम तेनी जात अन्यने दुःख न आवे, उत्तम तेनी जात प्राणिनां अंग न कापे; सत् क्रियामां शूर रहेवे अशुभ वर्तन परिहरे, नीचने पण उच्च करतो दया हृदयमां बहु घरे. उत्तम तेनी जाति कोइने गाळ न देवे, उत्तम तेनी जाति गुरुनां पदकज सेवे; उत्तम तेनी जाति न्यायधी वृत्ति चलावे, उत्तम तेनी जात परस्त्री संग न जावे मांस दारु परिहरीने उच्च वर्त्तन धारतो, गरीब जनने सहाय आपी दुःखथी उद्धारतो.
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