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११२ चर्म वडे उपकार करे ते पशुओ सारा, करे नहि उपकार जगत्मां तेह नठारा, मनः वचनने काया शोभे परोपकारे, स्वार्थ विषे जे लीन तरे शुं परने तारे; परोपकारे जीवन जातुं उच्च तेने मानीए, स्वार्थ लंपट मूड जननो जन्म फोकट जाणीए. वित्त छतां पण दान न आपे ते जन पापी, शक्ति छतां पण स्हाय न आवे व्यर्थ विलापी; खाय नहि ने खावा नहि आपे ते खोटो, उपकृति वण जाणो परभव नक्की तोटो; नदी वृक्षने सजनोनो धन्य धन्य अवतार छ, धन्य धन्य उपकारी जगमां जीवन जयजयकार छे. ४ परोपकारी आप तरे ने परने तारे, परोपकारीनो यश जगमा वर्ते भारे परोपकारी निर्धन पण जगमा छे डाह्यो, परोपकारी सन्त खरेखर विश्व गणायो उपकृति कृत सन्त शूरा दान शूरा जयकरा, बुद्धिसागर परोपकारी सन्त साचा अवतर्या.
धीर प्रशंसा.
छप्पय छंद. धन्य धन्य नर तेह विपद्मा धीरता धारे, रही तरस्थस्वभाव शोकने हर्ष निवारे;
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