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शुध्धचेतन प्रभु चित्त प्यारो,
आछंदोमां कानुं विद्वान्पणुं यथार्थ जणाय छे. योगविद्यानुं धाम परमात्मा छे. सिद्ध समान शक्ति योगमा छे. अर्थात् सिद्ध थर्बु होय तो पण योग शत्तिथी थइ शकाय छे. पिण्ड तथा ब्रमाण्डनी औक्यता योगथी थइ शके छे. छचक्र भेदीने गगनगढरुप ब्रह्मरंध्रमां जवु, त्यां जवा बंकनाल कहेतां मेरु दंड मार्ग छे. गया बाद अनंततेजोमय औश्वर्यमय आत्मानो भास थाय छे. चिंता अने शोक त्यां जणातां नथी. पिन्ड ब्रह्मांडनी औक्यता आत्मामां थाय छे. त्यारे अष्ट सिद्धि हाथ जोडी वरवा खडी थइ जाय छे पण ते बाह्य रागवाळी सिद्धिओमां ते योगीनुं मन रंगातुं नथी.आसक्त थतुं नथी अलक्ष्यतुं स्वरूप वैखरीना शब्दोथी वर्णी शकातुं नथी. आत्मा वर्णोथी परिपूर्ण रीते लखातो नथी. तेम अज्ञानीना परिपूर्ण लक्ष्यमां आवतो नथी, एटलो जैश्वर्यवंत छ. ते भक्तिना उत्साहथी तेने मेळववा यत्न करो. आ वातने योगीओ कबुल करे छे.
यथा सिंहो गजो व्याघ्रो,
भवेतू वश्यं शनैः शनैः सिंह गज व्याघ्र वगेरे प्राणीओ हळवे हळवे युक्तिथी वश्य थाय छे, तेमज प्राणने वश्य करवो अन्यथा साधकनो प्राण नाश थाय छे. - मात्र एज भजनमां भक्तियोग वैराग्यादिक संपूर्ण समाया छे, माटे कानुं ज्ञान, भक्ति,क्रिया एत्रण पदार्थपर वलण सहज लागे छे. जे जे भजनो गाइए छीए. तेमां निमग्न थइए छीए,माटे अमो तो थोडी थोडी कडीओ लेइ कर्तानो निर्देश अत्र बतावीए छीए कारण दरेक भजनोनुं अवलोकन करता तो ए ग्रंथो करतां
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