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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यग् ज्ञानक्रियाथी मुक्ति, कोईक वीरला पायारे धामधूममा.४ अलख खलकमां साचो समजो, देह पिंडमां वसियोरे; बुद्धिसागर ध्यान क्रिया शुभ, अन्तर अनुभव रसियोरे.धामधूममां.५ शुद्धपरमात्मस्वरुपस्मरण. पैसा पैसा ए राग. परमबुद्ध परमेश्वर स्वामी, रुपारुप प्रकाशीरे, चिदानन्द चेतन निर्दोषी, शाश्वत सिद्धि विलासीर परम. १ सात नयोथी आत्मधर्मनी, स्थिति शुद्ध विचारोरें; द्रव्यार्थिकनय नित्यपणेछे, एकरुप ध्रुव प्यारोरे. परम. २ पर्यायार्थिकनय अनित्य, पर्याय शुद्धि मजानीरे सोऽहं सोऽहं प्रभु गुण गावो, सिद्धि रहे नहि छानीरे. परम. ३ रत्नत्रयीनी स्थिरता छाजे, आनन्द अनहद राजेरे; परम महोदय लीला प्रगटे, त्रण भुवन शिर गाजेरे. परम. ४ तत्वमसि निश्चयनय निर्मल, घटमां गंगा काशीर; बुद्धिसागर घटमां शोधो, आनन्दघन अविनाशीरे. चितिशक्ति सामर्थ्य. राग उपरनो. चितिशक्ति अनंत खीलववी, योगाभ्यास वधारीरे; बाह्य भाव सहु दूर हरीने, सेवो धर्म सुधारीरे. चिति. १ For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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