SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शानादिक लक्ष्मीनो भोगी, उचभावना वरीएरे, वर्तः ॥११४|| मित्रो पण जो शत्रु थावे, तोपणे समता धरशोरे; मित्रभावना खरा हृदयथी, भावी मंगल वरशोरे. वर्त० ॥१५॥ अशुभ विचारोना प्रतिपक्षी, शुभ विचारो करवारे कोइक देव डगावे तोपण, पग पाछा नहीं धरवारे. वर्त० ॥११॥ अदेखाइथी कोइक भंडं, दुर्जन करवा धारेरे; एवानी पण दयां चिंतववी, प्रेमभावथी भारेरे. वर्त० ॥ ११७ ।। सर्व जगत्मां भाव शांतिथी, भव्यो शिव सुख वरशोरे; आत्मभाषथी भव्यो सर्वे, शिव सन्मुख संचरशोरे. वर्त०॥ ११८॥ जीव करु सहु शासन रसिया, उच्च भावना सारी रे, तरतम योगे उच्च भावने, भावो नरने नारीरे. वर्त० ॥११९॥ पडता जनने सा करीने, उच्च भावमा स्थापो रे परम करुणा दृष्टि धारी, संकट वल्लिकापोरे. वर्त० ॥१२०॥ आ मारो आ मुजथी जुदो, भेद भावना त्यागीरे; पोताना सम सर्वे जीवो, भावो थइ गुण रागीरे. वर्त० ॥१२॥ सत्ताथी सहु परम ब्रह्म सम, जीवो सहु संसारीरे; ब्रह्म दृष्टिथी जोतां क्षण क्षण, बनो शुद्ध ब्रह्मचारीरे.वर्त॥१२२॥ शुद्ध ज्ञानने ध्यान प्रतापे, कर्मनो पडदो चीरोरे; उच्च भावथी नजरे निरखो, साचो चेतन हीरोरे. वर्त० ॥१२॥ उच्च भावथी अन्तर शुद्धि, प्रगटे उत्तम बुद्धिर, अशुभ लेश्यास्कंधो नासे, प्रगटे शाश्वत ऋद्धिरे. वर्त० ॥१२४।। असंख्य प्रदेशी चेतन व्यक्ति, साची छे निज भक्तिरे षट्कारक निजमा परिणमता, सकळ कर्मथीं मुक्तिरे.वर्त०॥१२५।। आत्मोन्नतिमा उद्यम करवो..परनी इयां वारीरे; परोन्नतिमां शुभ पोतानु, वर्तो शिक्षा धारीरे, वर्त० १२६|| For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy