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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री पद्मप्रभुस्तवन. पद्मप्रभु जिन अंतरजामी, जगजीवन जगराज; पुरुषोत्तम परमातम स्वामी, निरख्या नयणे आज, हइडे हुं हरख्यु रे गिरुआना गुणे करी । करदोय जोडीरे वंदु हुं हर्ष धरी. (ए टेक ) ॥ १ ॥ स्वर्ग थकी चवी मात कुखे जब, आवे श्री जिनराय; तब चोसठ सुरपति हरखीने, प्रणमे प्रभुजी पाय; हरखे मातारे अतिशय भक्ति करी. करदोयजो० ॥२॥ जिनपति जन्मोच्छवने काळे, प्रभुने सुरगिरी लेइ, एकक्रोड शाठलाख कळश भरी, न्हवण करे सुर केइ; कर्ममेल टाळेरे, दुःख जेम नावे करी. करदोयजो० ॥ ३ ॥ जिनवर जननी पासे मूकी, नंदीश्वर मुर जाय, जन्म कल्याणक अतिशय योगे, अजवाळु नरके थाय; देव एवा देखुरे, होय भाग्य दशा खरी. करदोयजो० ॥ ४ ॥ लाड लडावे माता प्रेमे, मोटा जिनवर थाय; भोग रोग त्यजी निज आतम, जळ पंकजने न्याय, दीक्षाकाळे आवरे, लोकांतिक हर्षधरी. करदोयजो० ॥५॥ दीक्षा ग्रही निःसंगी जग धणी, महीयळमां विचरंत. कर्म खपावी केवळ पाम्या, समवसरण विरचंत; देव कोडाकोडीरे, साथ लइ आवे हरि. करदोयजो० ॥६॥ चार मुखे बार पर्षदा आगे, रुडी देशना देई कर्म हठावी शिवपुर पहोंच्या, परमातम पद लेइ, गाम आजोलेरे निरखंतां नैनां ठरी; बुद्धिसागर वंदेरे, शाश्वत सिद्धि वरी. करदोयजो० ॥ ७ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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