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माया ममता त्यागीने, झट चेतन तारो. हित० ॥ ३ ॥ लाख चोराशी योनिमां, चेतन भटकायो। दश ष्टांते दोहिलो, मानव भव पायो. हितः ॥ ४॥ करवी प्रभुथी भीतडी, निःसंगता धारी; बुद्धिसागर धर्मथी, शाश्वत सुख क्यारी. हित० ॥५॥
जगत् मुसाफर खान.
सझ्झाय-राग उपरनो. जगत् मुसाफर खानुं छे, मुसाफर जीव जाणो; स्थिरता वास न लेश छे, फोक ममता ताणो. जगत् ॥१॥ हाजीहा सहु स्वार्थथी, खेल मोहना खोटा; भ्रांतिमां भटकाय छे, रंक नृपति मोटा. जगत् ।।२।। क्षण क्षण आयुष्य छीजतुं, चेतन झट चेतो; भमे तेतरपर बाज जेम, काळ फाळज देतो. जमत्० ॥३॥ धर्म क्रिया एक सार छे, दया धर्म खरो छे बुद्धिसागर धर्मथी, सत्यानंद वर्यो छे. जगत् ॥४॥
विषय विकारजय, स्वाध्याय.
राग उपरनो. विषय विकारो जीतवा, शूरा जननी रहेणी; कायर जन कंपे अरे, जेवी चारण कहेणी. विषय ||१|| आत्मज्ञान श्रद्धा थकी, विषयो विष जेवा अनुभवामृत चाखतां, अन्तर गुण सेवा. विषय० ॥२ सर्व वीरमां ते वडो, विषयोनो न दास;
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