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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण स्थानक पगथालीये, चढी जिनवर भेडं; शुक्ल ध्याननी दृष्टिथी, देखतां नहि छेटुं. ॥५॥ निज दृष्टि निजमां भळी, विमलाचल फरशी; शत्रु सहु पाछा फर्या, देखी ज्ञाननी बरशी. ॥६॥ असंख्यप्रदेशी चेतन, थयो शक्ति विलासी; उत्कट वीर्य प्रध्यानथी, विमलाचल वासी. एकमेक प्रभु भेटतां, एकरूप सुहाया; सादि अनंति स्थितिथी, क्षायिक गुण पाया. ॥८॥ शुद्ध परिणति भक्तिथी, थया सिद्ध अनंता; विमलाचल महिमा घणो, पापी प्राणी तरंता. ॥९॥ सिद्धाचल शिखरे चडो, चेतन गुण प्यारा; आदीश्वर भेटी भला, अन्तरथी न न्यारा. ॥१०॥ शरणुं सिद्धाचल कर्यु, तेनो विश्वासी; बुद्धिसागर भेटतां, ज्योति ज्योत प्रकाशी. ॥११॥ अथ स्थुलिभद्रनी सजाय. थांपरवारी साहिबा काबील मत जाजो-ए राग. कोशा कहे स्थूलिभद्रने, विनति अलबेला; नवरस रंगे रीजीए, आ भोगनी वेळा. ॥१॥ योगिनो वेष केम धर्यो, भोगी नवरस भमरा; वैरागी अहीं केम आविया, थइ डाह्या डमरा. ॥२॥ आव्या तो आश पूरजो, विरहानि समावो; प्याला प्रेमना पीजीए, लीजीए सुखल्हावो. ॥ ३ ॥ छंडो वेषने भोगीडा, केम क्लेश वहोछो; For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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