SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९३ द्रव्यगुणपर्याय सहजं निर्मल छे मोति प्रगटे रत्नत्रायनी शुद्धि ध्यान कर्याथी, प्रगटे सहज स्वभाव आत्मनुं रूप वर्याथी. असंख्यमदेशी आतमानी शुद्धता दील घारीए, बुद्धिसागर सहज योगे आतमाने तारीये. प्रगटे शुद्ध विचारे सत्यानंदनी मोजो, तजी पुद्गलनी आश हृदयमां चेतन खोजो; चेतनमा लयलीन थइने निशदिन रहेशो, चेतनना प्रेमी थइ रहेने शिवपुर लेशो. क्षायिक भावे लब्धियो नव आत्मा सहेजे बरे, बुद्धिसागर ज्ञानमूर्ति सहज गुणने अनुसरे. शुद्धाशयनो राग करो जगमां जे मोटो, अशुद्ध आशय व्याग करो दुःखदायी खोटो, सहजसमतायोगे रमीये थइने सुखी, अन्तर चेतन सुरता साधे कदी न दुःखी. उच्चवर्त्तन जीवनुंझट ज्ञान तेजे झळहळे, बुद्धिसागर आत्म सेवे जोइए ते झट मळे. आत्ममदेशे सुरता साधी स्थिरता सेवो, aण भुवनमां स्थिरता सुख जेवो नहि मेवो: जाण्युं तेणे जाण्युं छे चेतन सुख प्यारु, चेतन सुखने जाण्या वण अन्तर अंधारु. दुर्गम दुर्लभ आत्मसुखने योगिओ केइ जाणता; बुद्धिसागर सहज सुखने हृदयमां केइ आणता. चेतन श्रद्धा अनेकान्तनयथी छे साची, सापेक्षा आत्म धर्ममा रहीए राची; For Private And Personal Use Only ॥ ४६ ॥ ॥ ४७ ॥ ॥ ४८ ॥ 11 89, 11
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy