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१८८ आत्म शक्तिनी अकळकळानो पार न आवे, धीर वीरने सिद्ध जगतमा आत्म प्रभावे. प्रेमोत्साहे ध्याइए दील चिदानंद शाश्वत प्रभु व्यक्तिथी व्यापक नहीने ज्ञानथीज चेतन विभु. ॥२९॥ अनंत शाश्वत सुखमय चेतन हुँ छ पोते, विवेकी जे भव्य सदा निज घटमां गोते; अलख हमारो देश बाह्यमा हुँ नहि रीजें, सर्व जीवो मुज मित्र वैरथी लेश न खीजें. 'आनंदमय हुं तत्त्वथी छं भावना सुख आपती; बुद्धिसागर आत्म रटना शोक वल्लिज कापती. ॥२६ ॥ अनंत गुण चेतनना तेनी अनंत शक्ति, सर्व गुणोनी भिन्न शक्तिनी करवी भक्ति स्थिरोपयोगे अनंत गुण प्रगटे छे सहेजे, समजी सत्य स्वरूप भव्यतुं तेमा रहेजे. आत्म शक्ति खीलववाने प्रेम साचो त्यां करो। बुद्धिसागर आत्मध्याने भवोदधिने झटतरो. ॥ २७॥ यम नियम आसनने प्राणायाम करीने, धरजो प्रत्याहार चित्तना दोष हरीने; धरी धारणा ध्यान समाधि शिव सुख वरीए, शिव सौधे चढवाने योगाष्टक ए धरीए. रहेणीथी रोजी खरे दील ईशने दील ध्याइए, बुद्धिसागर आत्मशक्ति ध्यानथी शिव पाइए.. ॥ २८ ॥ चैतन्योदय हेतु जगमा असंख्य निरखो, .. रत्नत्रयी छे मुख्य सर्वमा ज्ञाने परखो भात्मशक्ति अभ्यासक पुद्गल अँठ गणे छ।
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