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पर परिणति योगथी, परनो कर्ता प शुद्ध परिणतिए करी, निजगुण कर्ता तेह. कर्म रहित ते ईश छे, परनो कर्ता केम; पर कर्ता बहिरातमा, सवळो अर्थज एम. मिथ्यापरिणतिए करी, कारक पद बदलाय; शुद्ध परिणतिए करी, शुद्धपणे पणमाय. सर्वत्र व्यापक प्रभु, कोइक माने जीव; एक एवहि आतमा, माने जीवने शिव. प्रतिबिंब परमात्मनां जीव अनेको जोग; जीवपणुं टळतां थकi, परमातम पद होय.
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आतम तत्त्व न एहवुं व्यापक सर्व मझार; आतम तत्व जो एकतो, सुख दुःख घटे न सार. एक बंधाये अन्य बंध, एक छुटाये अन्य; संग्रह नय सत्ता ग्रहे, व्यापक छे चैतन्य. शति शरीरे भिन्न भिन्न, आतम तत्त्व कहाय; व्यक्तिथी सहु भिन्न छे, ऐक्यपणं गुण लाय. आतम ते परमातमा, अनंत आतम जाण; कर्म क्षयेथी सिद्ध बुद्ध, चिदानंद भगवान्. स्वामी सेवक भावने, शिवमां माने कोय; कर्म क्षयेथी सारीखा, भिन्नपणुं नहि जोय. जीव ईश्वर माया त्रिक, जगमोहि वर्ताय; जीव ईश्वर पद नहीं, वरे, ईश्वर जीव न थाय. माया आधीन जीव छे, माया उपरी ईश; एवं जाणी सेवको भक्ति करो जगदीश. सम्यक ज्ञान विना सुधा, भाखे मतिया कोय;
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