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देह थकी न्यारो नही, नास्तिक माने एह. सूक्ष्मबुद्धि सयुक्ति वण, आतम नहि समजाय; आतम अज्ञानी जडो, भवमांहि भटकाय. वीतरागना वचनथी, ए सघळू समजाय; सद्गुरु संगे आतमा, स्यावाद रूप थाय. अनंत काल भवमा भम्यो, थइ नहि तत्व प्रतीत आत्मतत्चना ज्ञान वण, टळी न भवभय भीत. कर्ता ईश्वर मानता, आपमतिला लोक; तत्वमार्गने नहि गणे, तसविद्या सब फोक. बहिरातमपद वासना, एहिज भवतुं मूल; मोह मदिरा पानथी, करी महा ए भूल. विवेक दृक् खूले यदा, तो सवढं समजाय; भेद ज्ञाननी योजना, हंस चंचुने न्याय. पंच तत्त्वथी भिन्न छ, चेतन मनमां जाण; अरणिमा अग्नि वसे, आत्म देहमा मान. पंच भूतमां ज्ञान गुण, कदी नहीं देखाय; मृतक शरीरे पंच भूत, नहि चेतन वर्ताय. सुख दुःख चेष्टा जेहथी, जाणे सुखने दुःख; ताप टाढने जाणतो, तृषा रोगने भूख. । आतम तत्व विचारीए, व्यापक देह मजार; असंख्यात मदेशथी, शाश्वत नित्य विचार. चित् शक्ति चेतन विषे, वर्ते काल अनादि पंच तत्त्व जड रूप छे, नहि तेथी तसबाध. परभव कोने देखियो, एनो उत्तर एम; ' सर्वज्ञे दीठो सदा, ज्ञानदृष्टिथी तेम.
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