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अमुल्य सत्य बोध. गुंहली. ओधवजी संदेशो कहेशो श्यामने-ए राग. मुनि गुरुने वंदन करवु भावी, विनय भक्तिथी साधक सिद्धि थायजो; प्रशस्त प्रेमे देवगुरुने सेवीए, . तन मन धनथी सेवो धर्म सदायजो. मुनि० ॥ १॥ भेद ज्ञानथी भावो आत्मस्वरूपने, अनंतशक्ति चेतननी प्रगटायजो; सर्वकालमा चिदानंद चेतन कयो, चेतन ज्ञाने वस्तु सर्व जणायजो. मुनिः ॥२॥ आत्मज्ञानथी अळपाशे मिथ्यापणुं, अंतरना उपयोगे साचो धर्मजो; धामधूमथी धमाधमी चाली रही, राग दोषथी बांधे जीवो कर्मजो. मुनि० ॥ ३ ॥ सद्गुणदृष्टि सद्गुण धारी लीजीए, उच्चभावथी भावो आतम द्रव्यजो; हेय ज्ञेयने उपादेयना ज्ञानथी, साचुं ते मारु मानो कर्तव्यजो. मुनिः ॥१॥ उपशम संवर विवेक रत्न विचारीए, समता भावे करीए आतम ज्ञानजो; भावदयाथी सत्य धर्म अवधारीए, आरमोमतिनुं कारण जाणो ध्यानजो. मुनि ॥५॥ दुनियामांहि दोषोने सद्गुणो भर्या, जेने जे रुचे ते लेता भव्य जो
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