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नर नारीने प्रतिबोधता, शुभ संयमना धरनार, त्रण गुप्ति धारे भावथी, पंच समितिथी संचनार. गुरु० ॥३॥ पंच इन्द्रियने वशमां करे, धारे गुप्ति ब्रह्मनी बेश; टाळे चतुर्विध कषायने, आनंदे विचरे हमेश. गुरु० ॥ ४ ॥ द्रव्य क्षेत्रने काल भावथी, पाळे संयम मुख करनार, उज्ज्वल ध्याने निशदिन रमे, श्रुत ज्ञान रमणता सार-गुरु० ॥१॥ वैरागी त्यागी शिरोमणि, धन्य धन्य मुनि अवतार. निश्चयनय व्यवहार जाणता, होशो वंदना वार हजार. गु०॥६॥ मुनिवर वंदे भवभय टळे, शुभ मुनि सुणो उपदेश; बुद्धिसागर सद्गुरु वंदीए, गुरु ज्ञाने सुख हमेश. गुरु०॥७॥
गुरुवन्दन.
गुंहळी.
बेनी रविसागर गुरु बंदीए-ए राग. बेनो पालो गुरुजीने वंदीए, उपदेशे छे जिनधर्म साधु श्रावक धर्म बे भाखता, जेथी नासे सघारे कर्म. बेनो. ॥१॥ सातनपथी मधुरी देशना, देवे भविजन सुख करनार; बोधिबीज ह्रदयमा वावता, भाखे धर्मना चार प्रकार. बेनो. |२|| नयभंग प्रमाणथी देशना, वर्षती घनजलधार; जीव चातक पान करे घj, थावे चित्तमा हर्ष अपार. बेनो. ॥३॥ संसार असार जणावता, दुःखदायक विषय प्रचार;
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