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ध्यानभुवनमां शाश्वत सुखने भोगवे, काँ कर्मनो कर्ता तपथी ध्वंसजो. मुनिवर० ॥३॥ त्रिगुप्तिने समिति पंचे परिवर्या, उच्च दशाना ध्याता मुनि अणगारजो बुद्धिसागर सद्गुरु मुनिने वंदना, जगमा जेनो थयों सफल अवतारजो. मुनिवर० ॥७॥
गुंहळी.
मुनिनो उपदेश. मुनिवरना उपदेशे मनडुं वाळीए; कहेणी जेवी रहेणी राखो भव्यजो, व्रत उच्चरीए मुनिनी पासे प्रेमथी; मानव भवनुं साचुं ए कर्त्तव्यजो मुनिघर० ॥ १ ॥ श्रवण करीने सार ग्रहो सिद्धान्तना; सद्वर्तनथी सुधरो नरने नारजो, निन्दा विकथा परपंचातो वारीए, सत्य धर्मना करीए नित्य विचारजो. मुनिवर० ॥१॥ बार भावना भाग्याथी छे उन्नति, कर्मवर्गणा खरे अनंति खासजो; उज्जवल आतम. याशे वैराग्ये करी, परपुदगलनी छोडो सघळी आशजो. मुनिवर ॥३॥
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