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॥८॥
साधीने देखी हर्षित यायजो, धर्म बंधुने कस्तो भावे स्हायजो अपूर्व अवसर जैन धर्म पाम्यो गणेजो. मुनिवर थावा इच्छा दील हमेशजो, मुनि थइने विचरीश देश विदेशजो एवा भाव प्रगटवाथी श्रावक खरोजो. पाळो श्रावकना उत्तम आचारजो, सफल करोने मानव भव मुखकारजो; बुद्धिसागर उपदेशे मुनिवर गुरुजो.
॥९॥
॥१०॥
गुंहळी.
जिनधर्म.
श्री स्थूलिभद्र मुनिवरमां शिरदारजो-ए राग. मुनिवर उपदेशे छे श्री जिनधर्मजो, टाळो भव्यो आठ जातनां कर्मजो; श्रवण करीने सद्वर्तन सुधारशोजोः 'दया धर्म वर्ते जगमां-जयकारजो .. जिन आणाथी पाळो मर ने नारजो; स्वरुप साचुं समजी जिन आगमयकीजो, साचुं बोलो निशदिन नर ने नारजो, साचुं बोले तेनो धन्य अवतारजो
॥२॥
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