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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपादान शीतलता समरे, निमित्त सेवे साधुं रे; समताथी क्षणमां छे मुक्ति, शीतल रुपमां राचुं रे. शी० ॥२॥ उपशम क्षयोपशम ने क्षायिक, भावे समता सार रे; ज्ञानानंदी समता साधी, उतरशे भवपारं रे. शी० ॥३॥ सहजानंदी शीतल चेतन, अंतर्यामि देव रे; बुद्धिसागर शुद्ध रमणता, शीतल जिनपति सेव रे. शी० ||४|| ११ अथ श्री श्रेयांसजिन स्तवनम्. राग केदारो. श्री श्रेयांस जिन साहिब सेवा, शाश्वत शिवसुख मेवा रे; द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नय, शुद्ध निरंजन देवा रे. श्री० ॥ १ ॥ योगी भोगी गत भय शोकी, कर्माष्टकथी भिन्न रे; शुद्धोपयोगी स्वपरप्रकाशक, क्षायिक निजगुण लीन रे श्री० ॥२॥ अनंत गुणपर्यायनी अस्ति, समये समये अनंति रे; पर द्रव्यादिकनी नास्तिता, समये अनंति वहंती रे. श्री० ॥३॥ अस्ति नास्तिमय शुद्ध स्वरुपी, संग्रहनयथी अनादि रे; व्यक्तपणु शब्दादिक नयथी, सर्व जीवोमां आदि रे. श्री० ||४|| अग्निथी जेम अनि प्रगटे, शुद्ध चेतनथी शुद्ध रे; बुद्धिसागर पुष्टालंबन, उपादान गुण बुद्ध रे. श्री० ॥ ५ ॥ १२ अथ श्री वासुपूज्यस्वामी स्तवन. राग केदारो वासुपूज्यनी पूजा कर्ता, पोते पूज्य ते काय रे, जिनवर पूजा ते निज पूजा, शुद्ध विचारे सदाय रे. बा० ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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