________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समयमां जाणता ते अनंता; तेथी पण जाणता अनंत सामर्थ्यना, ज्ञानने ज्ञेयरुपे मुहंता.
ताहरो० ॥३॥ परम इश्वर सदा ऋद्धि क्षायिक धणी, पौद्गलिक भावथी देव न्यारो; शर्म अनंतनो भोग तुं भोगवे, पूज्य तुं प्राणथी मुज प्यारो. तारहो० ॥४॥ द्रव्यने भावथी शरण छे ताहरु, शुद्ध उपयोगमां तुं प्रभासे; बुद्धिसागर प्रभो तारशो बापजी, ध्यानना योगमा देव पासे. ताहरो० ॥५॥
संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवनम्. पार्श्व संखेश्वरा जगत्मा जयकरा, ज्ञानने ज्ञेयरुपे सुहाया; सर्व जड वस्तुथी भिन्न तुं छे प्रभु; जाति भाति नहि लिंग काया. पार्श्व०॥ १ ॥ शक्ति अनंत आधार तुं देव छ एक समये सकलगुण भोगी, लब्धि क्षायिक नव साधनंतिपणे; शुद्ध रत्नत्रयि गुण योगी. पार्थ० ॥२॥ शुद्ध शक्तिमयी अलख अरिहंततुं; देवनो देव तुं धर्म धोरी, अचल निर्मल विभु व्याप्यने व्यापक
For Private And Personal Use Only