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सहनी साथे राखो मैत्री भावनाजो. सर्व आतमा निर्मल सिद्ध समानजो, सत्ताथी जोतां नहि भेद निदानजो; मदिरापानी पेठे दोष न जीवनोजो. दोषदृष्टि दोष न देखो भव्यजा, सहुनुं सारुं इच्छो शुभ कर्तव्यजो; मननी निर्मलतानी कुंची सत्य छे जो. दुर्जनतु पण बुरु न इच्छो लेशजो, समताभावे आयु गाळो हमेशजो; शाता अशातामां पण समभावे रहोरे. परम दयामां सर्व धर्म अवतारजो, निष्काम कृत्यथी वर्तो नर ने नारजो; पोतानाथी आत्मोन्नतिनी साधना जो.
आतम ते परमातम साचो देवजो, प्रेम करशो भव्यो तेनी सेवजो; आत्मोन्नतिमां खर्च न पैसा पाइनुं जो. निंदा विकथा दोषो सर्व निवारोजो, सद्गुणदृष्टिथी आतमने तारोजो; पोताना सम सर्व जीवोने, देखशोजो. आत्म दृष्टिथी साधो झट आत्मार्थजो. शुद्ध दृष्टिथी प्रगट थशे परमार्थजो; बुद्धिसागर मंगलमाला पामीए जो.
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