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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुम० ॥४॥ तुज चारित्रने धारतो, आठ कर्मने छेदे. अजर अमर अरिहंत तुं, भेद भावने टाळे बुद्धिसागर चरणथी, शिवमंदिर म्हाले. सुम० ॥५॥ ६अथ श्री पद्मप्रभ जिन स्तवन, राग उपरनो. पद्मप्रभु जिनराज तुं, शुद्ध चैतन्य योगी; क्षायिक चेतन रुद्धिनो, प्रभु तुं वड भोगी. पम० ॥१॥ हरिहर ब्रह्मा तुं खरो, जड भावथी न्यारो अष्ट रुद्धि भोक्ता सदा, भव पार उतारो. पम० ॥ २ ॥ नाम रुपथी भिन्न तुं, गुण पर्याय पात्र; शुद्धरुप ओळखाववा, गुरु तुं हुं छात्र.. पद्म० ॥ ३ ॥ सत्ताथी सरखो प्रभु, शुद्ध करशो व्यक्ति; बुद्धिसागर भावथी, प्रभुरूपनी भक्ति. पद्म० ॥ ४॥ ७ अथ श्रीसुपार्श्वजिन स्तवन राग केदारो. श्री सुपार्श्व जिनेश्वर प्यारो, भवजलधिथी तारोरे; स्थिर उपयोगे दिलमा धार्यो, मोह महामल्ल हार्योरे. श्री० ॥ १ ॥ मन मंदिरमा दीपक सरखो, रूप जोइ जोइ हरखोरे, षद् कारकनो दिव्य तुं चरखो, परम प्रभुरूप परखोरे. श्री० ॥२॥ क्षायिक गुणधारी जयकारी, शाश्वत शिव सुखकारीरे; बुद्धिसागर चिघन संगी, जग जय जिन उपकारीरे श्री० ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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