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नाश पामे छे. संपूर्ण कर्मक्षय थवो, तेज मोक्ष छे, यथातथ्व narasोधथी ज्ञान जाणवं तस्वनी श्रद्धाने दर्शन कहे छे. पापारंभ परित्याग रूप चारित्र जाणं. १ धर्मास्तिकाय, २ अधर्मास्तिकाय, ३ आकाशास्तिकाय. ४ काल, ५ पुद्गला स्तिकाय, आपंच द्रव्य अजवि छे जीव द्रव्य चेतनायुक्त छे, कालहीन पंच द्रव्यने पंचास्तिकाय कहे छे, मत्स्यने चालवामां जळ जेम गति सहायक छे. तेम जीवादिक पदार्थोंने धर्मास्ति काय चलन क्रियामां अपेक्षा कारणरूपे साहाय्य आपे छे. असंख्यातप्रदेशमय धर्मास्तिकाय छे. लोकाकाशने व्यापीने धर्मास्तिकायनी स्थिति छे. जीवादिक पदार्थने स्थिर थवामां अपेक्षा कारण अधर्मास्तिकाय छे. तेना असंख्यातप्रदेश छे. चौदराजलोकमां अधर्मास्तिकाय व्यापिने रह्युं छे. अवगाहना गुण आकाशनो छे. ते लोकालोक व्यापक छे. जेमां चर अने अचर भूतो असंबाधथी रहे छे, ते आकाशना अनन्त प्रदेश छे. 'धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय ए त्रग द्रव्यं अमूर्त्ति छे, वर्तना लक्षण कालनुं छे, रुप, रस, गंध, स्पर्श, शब्द विशिष्ट पुद्गल छे. लोकाकाशने व्यापिने पुद्गलास्तिकाय रह्युं छे. छाया, आतप, शरीर, इन्द्रिय, प्राण अपानादि पर्याथोथी पुद्गलास्तिकायनी स्थीति छे, पुद्गलरुपी छे, पुद्गल अने जीवने निकट संबंध छे षड्द्रव्य मध्ये आकाश द्रव्य क्षेत्र छे. अने पंच द्रव्य क्षेत्री छे. एक आंखनी पांपणनो एक
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बाळ लइए. तेनो अग्रभाग एवो सूक्ष्म करी ए के जेना एक
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