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जाणवा. अल्प ज्ञानी वा विशेष ज्ञानी पण पंच महाव्रत धारण करनार चोसठ इन्द्र करतां पण मोटा छे, एम शास्त्र फरमावे छे. श्रावक कदापि बहुश्रुत होय तो पण अल्पज्ञानी मुनिराजनी बरोबर आवी शकता नथी. कारणके श्रावक तत्त्व जाणतां छतों काचं पाणी पीवे छे, स्वीनी साथे सुइ रहे छे, जुटुं बोले छे, छकायना जीवनो नाश करे छे जाण्या छतां पुत्र पुत्री उपर मोह राखी संसाररुप काराग्रहमां पड़ी रहे छे, तेवो श्रावक कदापि पंचमहाव्रत धारी अने अल्पज्ञानी मुनिराजनी. बरोबर थइ शकतो नथी. कंचन कामिनीनो त्याग करवो मुश्केल छे. कंचन कामिनीना त्याग करनार मुनिराज चोसठ इन्द्र करतां पण मोटा छे, तेमां पण तत्वने सम्यग् रीत्या जाणनारा मुनिराज विशेष उत्तम छे. श्रावकनो उपदेश लागी शकतो नथी. वेश्या वेश्याने ब्रह्मचर्यनो उपदेश आपे तो जेम असर थाय नहीं, तेम श्रावक ग्रहस्थावासी उपदेश आपे तो बीजाने लागे नहीं. गुरुमहाराजनी पासे आगम सांभळवां ए श्रावकनुं कृत्य छे पण उपदेश आपवो ते श्रावकनुं कृत्य नथी. अने आपे तो जिनाज्ञा उत्थापक जाणवो. श्रावकने भण्यो साधु चखाणे तो तेने पण प्रायश्चित्त लागे छे, सद्गुरु महाराजनी पासे जीवादि तत्त्वनो सारी रीते अभ्यास करी परभावनों त्याग करी आत्मतत्त्व- ध्यान करवू, तेज उत्तम मार्ग छे. आत्माने एकांते व्यापक माननार मिथ्यात्वग्रस्त जाणवा. आत्माने सांख्यनी पेठे एकांते नित्य माननार पण सम्यग् ज्ञान
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