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नित्यानित्यादि आठ पक्षने जाणवाथी सम्यग् अनुभव ज्ञान प्राप्त थाय छे। अने तेथी सम्यक्त्वनी प्राप्ति थतां क्रोधादिशओनो नाश थाय छे. परपुद्गलने पोतानुं मानवानी जे मिथ्याबुद्धि अनादिकालनी हती तेनो नाश थाय छे. आश्रवनुं स्वरूप जाणी आत्मा तेनो त्याग पूर्वक संवर तत्त्व ध्यावे छे. अने आत्मानी साथ अनादिकालथी लागेलां आठकर्म तेनो नाश थाय छे अने आत्मा लोकालोक प्रकाशक स्वतः सिद्ध थाय छे, आत्मतत्त्वने अनेकांत रोत्या ज्यां सुधी जाण्यो नथी त्यां सुधी असम्यग् ज्ञान कहेवाय छे, अने असम्यग् ज्ञानथी परवस्तुनी यथायोग्य ओळखाण थती नथी अने मिथ्यात्वरुप अंधकारमां पडी रहेवुं पडे तो चारगतिमां पुनः पुनः नाना अवतार धारण करी भमवं पडे छे. जेणे आत्माने सम्यग् रीत्या ओळखयो, मनन कर्यो तेणे सार ग्रहण कर्या. जग जाहेर वर्तमान पत्र वांच्यां अनेक ज्योतिषी शास्त्रनो अभ्यास कर्यो, वैदक शास्त्रो अभ्यास कर्यो. एम. ए. एल. एल. बी. पर्यंत केळवणीनो अभ्यास कर्यो पण तेथी मुक्ति मळती नथी, जगतमां तेथी मोटाइ माननारे खाली मोटाइ मानी एम सम 'जवं. खरी मोटाइ आत्म स्वरुपने जाणवाथी छे, धनथी मोटाइ मानवी ते मूर्ख माणसोनुं काम छे, अने तेवा माणसने जे साधु वर्ग पण मोटो माने तो पोते पण पुद्गलानंदी छे एम समजकुं. कहां छे के.
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