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अमूर्खता, अगुरुलघु, दान, लाभ भोग, उपभाग, कर्ता, भोक्ता, परिणामिकता, अचल, अविनाशी, अनंत, अखंड, अंमंग, अज, अनाश्रयी, अशरीरी, अणाहारी, अयोगी, अभोगी, अलोपी, अवेदी, अकषायी, असंख्यप्रदेशी, अक्रिय, नित्य, अनित्य, सत् , असत् , भेद, अभेद, भव्यत्व, अभव्यत्व सामान्य, विशेष, इत्यादि अनंत गुणपर्याय रूप धर्मनो धणी आ आत्मा छे. शरीरमा रह्यो छतो पण तेथी न्यारो छे, अशुद्ध परिणतियांगे आत्मा परभावनो कर्ता जाणवा. शुद्ध परिणतियोगे आत्मा स्वभावनो कर्ता जाणवो, स्वभाव कर्तायोगे परभावनी नास्तिता जाणवी. परभाव कायोगे स्वभाव कापणानी आविर्भावरुपे नास्ति छे, अने तिरोभावरुपे अस्त्रि स्वभाव कापणानो छे, अंतरात्माने सक्था शुद्धि आत्मानी तिरोभावे छे. परमात्माने सर्व शुद्धि प्रगटपणे छे. आत्मा त्रण प्रकारना छे. बहिरात्मा, बीजो अंतरात्मा, त्रीजो परमात्मा, शरीरादिकने आत्मपणे गणे, अने शरीरादिकथी आत्मा जुदो नथी. एवी जेनी बुद्धि छे, ते बहिरात्मा जाणवो. आत्मा असंख्यात प्रदेशी, चेतना युक्त, ज्ञानादि अनंत गुणपर्याय सहित आत्मा अरुपी, शरीररुपी, आत्मा सहज अकृत्रिम; शरीर सयोगी कृत्रिम ते माटे कर्म संयोगे शरीरादिक मध्ये रह्यो छे, पण तेथी भिन्न छ एवो भेद ज्ञानवंत समकितगुण ठाणाथी मांडी क्षीणमोह चरम समय पर्यंत अंतरात्मा जाणवो.
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