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थयो तोपण पलटे नहीं, स्वजातिपणुं मूके नहीं, ते माटे जीव द्रव्यनी सत्ता शुद्धगुणपयायमयी छे. यद्यपि जीव अशुद्ध परिणामी छे, अने ज्ञानादिक गुण सर्व कर्मथी अवराया छे, तोपण सत्ता शुद्ध छे. आत्मामां सामान्य स्वभाव तथा विशेष स्वभाव रह्यो छे. सामान्य स्वभाव- स्वरूप.
१ द्रव्यना सर्व प्रदेश गुण पर्याय तेनो समुदाय ते एकापिंडरूप छे, पण भिन्नरूप वर्ततो नथी तेने एक एक स्वभाव कहे छे.
२ बीजो नित्य अविनाशता, अभंगुरतापणो, ध्रुवपणो, तभावाव्ययं नित्यं इति तत्वार्थवचनात् ; ते नित्य स्वभाव आत्मामा रह्यो छे तेमज बाकीनां पांच द्रव्यमां पण रह्यो छे.
३ त्रीजो सर्व द्रव्य पोताने भावे छता छे, पण कोई काले पोतानी रुद्धिने मूकता नथी. ते अस्तिस्वभाव जाणवो.. आत्मामां अनंतगुण अनंतपर्यायरुप रुद्धि भरी छे. पण तेनो नाश कोइ काळे थनार नथी. आत्माने कर्म लाग्यां छे, तेथी आत्मानी ऋद्धि तिरोभावे वर्ते छे, माते ते अस्तिस्वभाव जाणवो.
चोथो भेद स्वभाव ते कार्यगत छे. षट् द्रव्यमां भेद स्वभाव रह्यो छे. आत्मामा ज्ञानादिक गुणो सर्व पोतपोताना कार्यने करे छे, परंतु एक गुण ते बीजा गुणना कार्यने करतो नथी. ज्ञान ते जाणवा रुप कार्यने करे छे दर्शन गुण देखवा रुप कार्यने करे छे. तथा चारित्र ते रमणता निज गुण
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