SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૩ आश्रवद्वारने रुंधीए । इंद्रियदंड कषाय ॥ सत्तरभेद संजम कह्यो । साचो मोक्ष उपाय ॥१॥ - ए सत्तर भेदे संयममा प्रवृत्ति करवी. ते न बनी शके तो श्रावकनां व्रत ग्रहण करवां, ते न बनी शके तो, देव गुरु धर्मनी श्रद्धा करवी ए साचो मोक्षनो उपाय छ, बाकी मिथ्यात्वभावे रमतां आ चेतने अनंतकाल गुमाव्यो. अने कोण जाणे हजी क्यां सुधी भटकवू पडशे; आयुष्यनी खबर नथी. सांसारिक वस्तुओ उपरथी मोहमाया उतारी वैराग्यभावे संसारनी असारता चितववी, आत्मस्वभावे रमवार्थाज आत्म साधक महापुरुष बनी मोक्षपद पामी शकाय छे. संयम मार्गने ग्रहण करनारा मुनीश्वर महाराजा अक्षय स्थिति पद पामे छे. जे संयम ग्रहण करे छे, तेने मुनि कहे छे. पुण्यनी अनंति राशि भेगी थाय, त्यारे मुनिनो वेष ग्रहण करायछे, तेवा मुनीश्वर महाराजा पंच महाव्रत धारण करता, उत्सर्ग अने अपवाद मार्गने जाणता. द्रव्यक्षेत्र, काल, भावने जाणता छता आत्मभावे रमे छे. दशविध यति धर्ममा तत्पर रहेछे. शत्रु मित्र उपर समभाव धारण करे छे. बावीश परिसह सहन करे छे, अने वध बंधन आदि उपसर्ग थए छते आत्मभावे रमे छे, अने चिंतवेछेकेछेदन भेदन ताडना, वध बंधनने दाह । पुद्गलने पुद्गल करे, तुं छे अमर अगाह ॥१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008522
Book TitleAnubhav Panchvinshtika Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1902
Total Pages249
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy