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२०७ तेथी शं ? तेने तिरस्कार दृष्टिथी जोवो ते योग्य नथी. कोइ मनुष्य पोतानो पुत्र रोगी छे, तेथी तेना उपर क्रोध करे, धमधमायमान बनी जाय, एशुं पिताने योग्य गणाय ? ना नही गणाय. पोताना पुत्रनो रोग टाळवाने प्रयत्न करवो, ए ज पिताने योग्य छे, तेम अविवेकीनो अविवेक राळी तेने विवेक आपवो तेज विवेकी, भूषण छे. विवेक आपयो ते रुपकार्य पोतानाथी ना बने तो माध्यस्थपणुं धारण करवू, तेनी उपेक्षा करवी, एज विवेकीनी प्रवृत्ति छे. एक यउंना आटानी रोटली बनावतां हजारो लोको शीखे छे. कोई सारी बनावे छे, अने कोह कठण बनावे छे, कोइ सर्व करता उत्तम बनावे छे. पाणी तेनुं ते छे, लोट पण तेज छ, पण त्यां विवेकनी विशेषता छ, खावामां, पीवामां, पहेरवामां, स्नान करवामां, बोलवा आदि कार्यमा विवेकनी जरुर छे. धर्मनां पण जे जे कार्य करवां ते विवेक दृष्टियी करवां एक हजार रुपैया धर्मखाते वापरनार द्रव्यक्षेत्र, काल, भाव जोइने ते रुपैयाथी उत्तम फल थाय तेम प्रवृत्ति करे छे. हजारो श्रावको उझमणां करे छे पण कोइ वीरला मनुष्यो विवेक दृष्टि पूर्वक उजमणुं करता हशे. विवेकी पुरुष-रात्री अने दीवसमां जे जे कार्य करवां, तेनो नियम करे छे. पण फलाणानुं तो आम थयु, फलाणानी स्त्री तो बहु खराब छे. फलाणानी स्त्री तो मर्कटी छे. अमुक खराबछे आ तो व्यभिचारी दुष्टछे अमुक तो जरा मात्र पण झंपतो नथी, एवी नकामीवातो करी पो
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