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२०३ समान, कमरुप वेलडी कापवाने कुठार समान, एवं ज्ञान दानः मुक्ति सुख आपवा चिंतामणि रत्न समान छे, ज्ञान ए आस्मानो मुख्य गुण छे. सम्यग् रीत्या जो सर्व पदार्थ स्वरुप जाणवामां आवे, तो कर्म प्रकृति आत्माथी दूर थशे. परिहरवा योग्य पुद्गलास्तिकाय छे. आदरवा योग्य आत्म गुण छे. जीवतत्व अने अजीवतत्त्व जाणवा योग्य छे माटे. पुद्गल संगानिवारी भवान्त करी लोकाग्रे सिद्धि सौधमां वसवू, एज मारे इष्ट कर्त्तव्य छे. परघर भिक्षा मागतां अनंतोकाळ. गुमाव्यो; पुद्गळनी ॲठ दररोज हुँ चुंथु छ में अनंतिवार पर पुद्गल आहाररुपे भक्षण कयु. ज्यां मुधी आत्मा पो-. वाना घरमां रमतो नथी, अने परघरमां रमे छे, आशा दासना वश थइ चेतना रुप पोतानी स्त्री साथे रमतो नथी, त्यां मुधी मुक्ति सुख प्राप्त कर दुर्लभ छे; ज्यां मुधी हास्य, प्रपंच, विश्वासघात आ कुटेवोने वश आत्मा वर्ते छे, त्यां सुधी शुद्ध आत्मसाधक बनवू दुर्लभ छे, दुर्लभ एवं आत्म स्वरुप महापुरुषने सुलभ थाय छे, विवेकी पुरुष संसारमा रही मोहक पदार्थोथी मुंझातो नथी. जेम कादवामांथी जलनी संगते कमल उत्पन्न थाय छे, पण जळ थकी न्यारं रहे छे, संसारी जीव आत्म स्वरुपने समजी संसारमा रही सांसारिक कार्य करतो छतो पण ते थकी न्यारो रहे छे. पण तेमां मोह पामतो नथी. विषयो विष सरखा जीवने चार गतिमां भ्रमण. करावे छे. भव्यात्मा विषयोथी मुंझातो नथी, अकार्य ने करतो.
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