________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मनुष्योमा पोतानी ख्याति वधारे, तेमनी जशकीर्ति गवाय अनेक प्रकारनां सुख भोगवे, राजादि हजारो तेमनी सेवा करे तो पण तेमनी सिद्धि थवानी नथी. बीचारा चार गतिमां भटकी नरक निगोदादिक, अनंत दुःख पुनः पुनः अधोगमनकरी भोगवनारा थशे, पंडित पुरुषो ते मिथ्यात्वथी दूर रहे छे. सर्पनी पेठे थिथ्यात्वना त्यागी होय छे. वळी मिथ्याल्व बे प्रकारनां छे. धम्मे अधम्मसन्ना रुप जे अंतःकरण परिणामः ते निश्चय मिथ्यात्व जाणवू. अंतरंग मिथ्यात्वने सूचवनारी जे बाह्य प्रति करवी, ते व्यवहार मिथ्यात्व जाणवू. बाह्य अने अंतरंग मिथ्यात्व पण ज्ञान थकी टळे छे, माटे ज्ञान छे ते सर्व गुणमा मुख्य गुण छे. ज्ञानी सम्यक्त्वने पामे छे. स्याद्वादशैली ज्ञात पुरुषोना हृदयमां ज्ञानरुप सूर्य प्रकाशवाथी मिथ्यात्वरुप अंधकारनो भेदभाव रहे नहीं. ज्ञानी मिथ्यात्वीओनां शास्त्र भणे गणे तो पण तेने ज्ञानरूपे परिणमे छे, कारण के ते मिथ्यात्व शास्त्रने पण स्याद्वादमां घटावी जाणे छ, अने एकांत वचनोनो त्याग करे छे.
यदुक्तं श्री नंदिसूत्रे सेकिंतं मिच्छसुयं मिज्छसुयं जं इमं अन्नाणी एह मिच्छदिठीहिं सथ्थदमइ विगप्पिय तंजहा भारहं रामायणं भीमासुरुपं कोडिभयं संगरुहिस्साओ कप्पासियं नाग
For Private And Personal Use Only