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यार्थिक नये करी सर्व पदार्थोनुं अनित्यपणुं जाणवू, दरेक पदार्थोमां नित्यानित्यत्व रह्यु छ एम ज्ञानी जाणे छे.
व्यवहार मार्गे ज्ञानी वर्ते छे, अने निश्चयथी शुद्ध आत्मस्वरुप उपयोगे करी ध्यावे छे. कोइ नयने उत्थापतो नथी, पोत पोताना स्वरुपे सर्व नय सत्य छे, एम ज्ञानी सहेछे. .. वळी ज्ञानीनु लक्षण कहे छ, द्रव्य क्षेत्र, काल, भावों सर्व पदार्थोनुं स्वरुप जाणे छे. जीवतत्त्वने द्रव्य,क्षेत्र,काल,भावथी जाणे छे. अजीव तत्त्वने द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भावथी जाणे छे. पुण्य तत्त्वने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावथी जाणे छे. पाप तत्वने द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भावथी जाणे छे. आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध अने मोक्ष तत्वने द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भावथी जाणे छे. पंच महा व्रतमांना प्रत्येक व्रतने द्रव्य क्षेत्र काळ भावथी जाणे छे. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, काल, अने जीव द्रव्य एषद्रव्यने द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भावथी जाणे छे, नवतत्त्वनुं जिनवचननानु सारे स्वरुप जाणनार ज्ञानी होय छे. नंवतत्त्व तथा षड्व्व्य नी श्रद्धा करे छे, जीवादि नवतत्त्व जाणवा योग्य छे. जीवतत्त्व अने संवर, निर्जरा, मोक्ष ए चार तत्त्व आदरवा योग्य छे, तथा व्यवहार नये करी पुण्यतत्त्व आदरवा योग्य छे. अजीव, पाप, आश्रय, अने बंध, तथा निश्चयनयें करी पुण्य पण 'परिहरवा योग्य छे. जीवद्रव्य आदरवा योग्य छे. अने बाकी
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