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तेनी परीक्षा करे छे. त्याज्य, अत्याज्य, आदेय इत्यादि सर्व ज्ञानी जाणे छ बाह्य क्रिया रुचिवंत मूर्ख शी रीते स्यादाद शैलीने जाणी शके ? जे मुनि ज्ञानमार्गे स्थिर होय तेमनो आदर करवो, या ते गुणनी अभिलाषा वाळा होय तेमनो आदर करवो, पण बाल क्रियामां राचवू नहीं, ते बाबत पंचाशकनी साख जोइ लेवी. पांच इंद्रियना त्रेवीश विषयथी दूर रहीने, तथा पोतानी मान पूजाथी दूर रहीने, आत्माना खपी बनीने, ज्ञाननो अभ्यास करवो, अने गीतार्थ आत्मार्थी संत पुरुषोनी आज्ञाने आधीन रहीने सेवा करवी, अने तेगनी संगत करवी, ज्ञानीनां कटुक वचन पण अमृत समान लेखववां, अने अज्ञानीनां मधुर वचन पण कडवां जाणवां, ज्ञानीनी लात सारी पण अज्ञानीनी मीठी वात खोटी. ज्ञानी पुरुष मोक्ष मार्गानु सारी क्रियाने विषे तत्पर रहे. छे, अने सत्तर भेदे संयम पाळे छे. ज्ञान एकांते सत्य मानी, जे क्रियानो त्याग करे छे, ते कदाग्रहग्रस्त जाणवा.
जे भव्यो ज्ञानज सत्य मानी एमन कहे के, क्रिया कष्टनी शी जरुर छ ? आ रीते क्रिया उत्थापे छे, ते ज्ञान- फळ पामता नथी. अने मुक्तिरुप स्त्री तेनापर राग करती नथी, अलबत तेथी मुक्ति दूर रहे छे. कंदोइनी दूकाने विविध लाडु घेवर देखवाथी भूख भागती नथी, पण ज्यारे तेनी प्राप्ति माटे प्रयत्न थाय छे, त्यारे लाडु मळे छ, अने ते पण मुखमा घाले छे, त्यारे तेनो स्वाद आवे छे, अने उदर पूर्तिथी तृप्ति
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