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लक्ष्मी भाग्योदये मळी शके छे. केटलाक जीवो अत्यंत लक्ष्मी कमाक्वा महेनत करे छे पण कंइ प्रामी शंकता नथी. ए जह वस्नुरुप लक्ष्मीनी तृष्णाथी दुनि ध्यावं पडे छे, अने दुर्ध्यानना योगे कर्मनी वर्गणाओ आत्माने लागे छे, अने तेथी आत्मा दुःखनी परंपरा पामतो छतो चतुर्गति रुप संसारमा परिभ्रमण करे छे. राम पांडव भरत विगेरे पण सोनु रु' रत्न प्रमुख जे लक्ष्मी कहेवाय छे, तेने साथे लेइ गया नहीं तो हे भव्य जीवो तमो शं साथे लेइ जशो ? ना कदी लेइ शकाशे नही. धर्म छे ते खरी लक्ष्मी जाणवी. अने तेना माटे प्रयत्न करवो जोइये. केटलाक जीवो स्त्रीनी लालचमा पोतानो जन्म गुमावे छे, स्त्रीनेज साररुपे गणे छे. पण तत्वबुद्धिथी हे भव्यजीवो ! जो तमे विचारशो तो स्त्री पण तमने असार लागशे. जुओ स्त्री- जे मुख देखाय छे ते लोही अने मांस सहीत छ, स्त्रीनुं शरीर सात धातुथी बनेटु छे. स्वीना शरीरमां विष्टा मूत्र भरेखें छे, तेना नाकमां लींट पण वहे छे, स्त्रीनुं जेब्रु बाहिरथी शरीर देखाय छे, तेवू अंदरनुं नथी, तेने देखी मूह पुरुषो राचे छे पण वैरागीजीवो तेने देखी राचता नथी. कंचन अने कामिनीनी लालचमां आवं जगत् फसाइ जाय छे, अने वारंवार जन्म मरण करे छे, जे स्त्री खूबसूरत देखाय छे, तेज घरडी अगर रोगी थवाथी तेना उपर अरुचि थाय छे तो क्षणिक सुखना भ्रमने उत्पन्न करनार स्त्री उपर मोह धारण करवो नहीं. मरती वखते आपणी साथे स्त्री आवी
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