________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२०
उत्तर - हे पृच्छक ! हे भव्यात्मा ! एकाग्र चित्तथी साभळ. ध्यान बे प्रकारे छे १ सालंबनध्यान, २ निरालंबन ध्यान साकार वस्तुमां गुणीनो आरोप करी एकाग्रचित्तथी गुणोतुं स्मरण करवुं ते सालंबन ध्यान कहेवाय छे, साकार वस्तुना आलंबन विना भाव स्फुरायमान थतो नथी. भावनी स्फुरणाथी निरालंबन ध्यान थइ शके, ते कहे छे. परमात्मा स्वरुप पोतानो जे आत्मा छे, तेना असंख्यात प्रदेश छे, एकेक प्रदेशे अनंतुं ज्ञान छे, अनंतुं वीर्य छे, अनंत गुणनो आत्मा घणी छे, कर्म थकी रहित स्फटिक रत्ननी पेठे निर्मळ छे, शुद्ध छे, ज्ञानमय छे, एम उपयोगे करी एका प्रवृत्त्या स्मरण करवुं तन्मयता भाववी, तेनुं नाम निरा लंबन ध्यान छे, निरालंबन ध्याननो शुक्ल ध्यानमां अं तर्भाव थाय छे, अने सालंबन ध्याननो धर्म ध्यानमां अंतभाव थाय छे, सालंबन ध्यान विना निरालंबन ध्यानमी प्राप्ति थती नथी, माटे प्रथम सालंबन ध्याननी जरुर छे, रुपीनुं ध्यान करवाथी रुपीपणुं प्राप्त थाय छे, एवी जे शंका करी ते पण मुक्तिद्वारा विचारतां निरस्त थाय छे, कारण के, प्रभुनी मूर्त्तिने विषे भावतीर्थंकरनो आरोप करीने तेमना गुगोनुं ध्यान तथा स्मरण करवाथी, रुपीपणुं प्राप्त धतुं नथी. उल कर्मवडे संयुक्त आत्मानी शुद्ध दशा जागतां अरुपी पद पामे छे, आत्महिताकांक्षी दरेक वस्तुने देखे छे, पण ते तन्मय बनतो नथी.
For Private And Personal Use Only