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भावार्थ-धर्मकृत्य करतां वीर्जु कोइ उसमः कार्य नथी, कारण के ज्यारे माणस मरे छे त्यारे सगां व्हालां पुत्र पुत्री, स्त्री, धन राज्य रिद्धि आदि कोई साथे आवतुं नथी. फक्त मरनारनी साथे पुण्य अने पाप जाय छ, पुण्य पण धर्म तरीके कहेवाय छे. फक्त परमव जतां धर्म सुखदायक थाय छ. पण आ संसारमा जेना सारु आपणे आखो दिवस महेनत करीए छीए ते जड वस्तुरुप लक्ष्मी साथै आवती नथी. फक्त आपणे मोहथी ते परवस्तुने मारी मारी जाणीये छीए, पण ते साथे आवशे नहि. परभव जतां धर्म साहायकारक थशे, कोइ जीव संसारमा स्त्रीथी मुख माने छे, कोइ पुत्रथी सुख माने छे, कोइ धनथी सुख माने छे पण उत्तम पुरुषो तो धर्म थकी मुख माने छे. ___ आर्यदेशमा जन्म थवो, श्रावक कुळ अवतार, पंचेंद्रिय संपूर्णता, देव गुरुनी जोगवाइ, तेमां पण बोधिनी प्राप्ति पुण्यथकी प्राप्त थाय छे, जे जीवे परभवमा धर्मर्नु साधन कर्यु नथी ते आ भवमां दुःखिया देखाय, छे, अने जे जीवोए धर्म साधन परभवमा कयु छे ते मुखी जणाय छे. राज्य मामवं ए पण पौद्गलिक सुखनुं कारण छे, माटे ते तरफ लक्ष नहि आपतां मुक्ति सुख प्राप्त करवानी इच्छा करवी जोइये, मुक्ति सुख समान बीजं कोइ मुख नथी. श्रावकनो धर्म अने साधुनो धर्म पाळवो ते पण मुक्तिने माटे छे, अने मुक्ति पण धर्मना आ
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