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रहित सिद्ध भगवंत छे, गोत्र कर्मना नाशी सिद्ध भगवंतने अगुरु लघुगुण उत्पन्न थयो छे, अंतराय कर्मना नाशथी अनंत गुण स्वसत्ताए रह्या हता ते प्रगट्या छे. अनंतशक्ति युक्त थया, दानांतरायना नाशथी अनंत गुण दान पोताना आत्माने प्राप्त थयुं छे. लाभान्तरायना नाशथी अनंतगुण लाभनी प्राप्ति थइ छे. भोगान्तराय तेमज उपभोगान्तराय तथा वीयांतरायना नाशथी स्वाभाविक गुणो प्रगट्या छ. सिद्ध परमात्माने एकेक प्रदेशे ज्ञान दर्शन चारित्र, वीयर्यादि अनंतगुण प्रगटया छ. सिद्धना जीवने समय अनंतानंत नवा नवा ज्ञेयनी वर्तनारुप पर्यायनो उत्पाद व्यय थइ रह्यो छे । अने गुण तो ध्रुवता ध्रुवपणेज वर्ते छे. तेणे करी समय समय अनंत मुख सिद्ध परमात्मा भोगवे छे.
आठ पक्षे करी सिद्धनुं स्वरुप. ज्ञानादिक अनंतगुण सिद्ध भगवानने प्रगटया छे, जे सदाकाळ नित्य शाश्वतापणे वर्ते छे. ते माटे सिद्धने नित्य कहीए तथा ए ज्ञानादिक अनंतगुण जे सिद्धने प्रगट्या छे तेने विषे अगुरुलघु पर्याय समय समय हानि वृद्धिरुप उपजवो विणसवो करे छे. ते माटे सिद्धने अनित्य पण कहेवाय. श्री रुषभ या श्री महावीर एम एकनुं ग्रहण करतां तो सिद्ध एक छे. तेथी सिद्धने एक कहीए, तथा गुण पर्याय तथा प्रदेश ते सर्व सिद्धने अनेक छे, माटे अनेक पण कहीए, तथा ए सर्व
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