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छत्त-चामर-पडाग-जुअ-जवमंडिआ, ज्ञयवर-मगर-तुरय-सिरि. वच्छ-सुलंछणा । दीव-समुद-मंदर दिसागय सोहिआ,
सत्थिअवसह-सीह-रह-चक-वरंकिया ॥३२॥ ललिअय ।। सहावलट्ठा सहप्पइट्ठा अदोसट्ठा गुणेहिं जिट्ठा ॥ पसायसिट्ठा तवेणपुट्ठा, सिरीहिं इट्ठा रिसीहिं जुट्ठा ॥३३।।
वाणवासिया ॥ ते तवेण धुअ सवपावया, सव्व-लोअ-हिअमूलपावया । संथुआ अजिअसंति-पायया, हुतु मे सिवसुहाण दायया ॥३४॥
अपरांतिका ॥ एवं तव-बल-विउलं, थुअं मए अजिअ-संतिजिणजुअलं । ववगयकम्मरयमलं, गइं गयं सासयं विउलं ॥ गाहा ।। तं बहु गुणप्पस यं, मुक्ख सुहेण परमेण अविसायं । नासेउ मे विसायं, कुणउ अ परिसावि अप्पसायं ।।३६।। गाहा ॥ तं मोएउ अ नंदि, पावेउ अ नंदिसेणमभिनंदि । परिसाव अ सुहनंदि, मम य दिसउ संजमे नंदि ।।३७॥गाहा ।। पक्यिअ चाउम्मासिअ-संवच्छरिए अवस्स भणिअव्यो । सोअव्वो सव्वेहि, उबसग्गनिवारणो एसो ॥३८॥ जो पढइ जो अनिसुणइ, उभऊ कालोप अजिअसंतिथयं ।। न हु हुँति तस्स रोगा, पुव्वुप्पन्नावि नासंति ॥३९॥ गाहा ॥ जइ इत्बइ परमपयं, अहवा कात्तिं सुवित्वरं भुवये ।। वा तेलुक्कुद्धरणे, जिणश्यणे आयरं कुणह ॥४०॥ गाहा।।
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