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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ किरियाविहसंचिअकम्मकिलेसविमुक्खयरं, अजिअं निचिअं च गुणेहिं महामुणिमुसिद्धिगयं । अजिअस्स य सन्तिमहामुणिणो वि अ संतिकरं, सययं मम निव्वुइकारणयं च नमसणयं ।।५।। आलिंगणयं ।। पुरिसा जइ दुक्खवारणं, जई अ विमग्गह सुक्खकारणं । अजिअं संतिं च भावउ, अभयकरे सरणं पवज्जहा ।।६।। ___ मागहिआ ॥ अरइ-रइ-तिमिर-विरहिअ-मुवरय-जरमणं, सुर-असुर-गरूल-भुयगवइ-पयय-पणिबइयं । अजिअ-महमविअ सुनयनयनिउण-मभयकर, सरणभुवसरिअ भुवि-दिविजमहिअं सययमुवणमे ।।७।। संगयय ।। तं च जिणुत्तममुत्तमनित्तम-सत्तधरं, अजव-मद्दव खन्ति विभुत्ति समाहिनिहिं । संतिकरं पणमाभि दमुत्तम-तित्थयर', संतिमुणी मम सांतसमा हेवरं दिसउ ।।८।। सीवाणयं ।। सावत्थि पुव्वपत्थिवं च, वरहत्थिमत्थय-पसत्थ-वित्थिन्नसंथियं । थिर-सरिच्छ-वच्छ मयगल-लोलायमाणवरगन्धहत्थिपत्थाणपत्थियं संथवारिहं । हथिहत्थिबाहुं धन्त कणग-रुअग-निरुवहय पिंजर, पवरलक्खणो वचिय सोमचारु-रूवं, सुइसुहमणाभिरामपरम रमणिज्जवर देव-दुंदुहि-निनाय महुरयरसुहगिर ॥९॥ वेट्टउ ।। अजिअं जिआरिगणं, जिअसव्वभयं भवोहरिउं । पणमामि अहं पयउ, पावं पसमेउ मे भयवं ॥१०॥ रासालुद्धउ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008512
Book TitleAjitnath Vandanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year1976
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Worship
File Size5 MB
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