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किरियाविहसंचिअकम्मकिलेसविमुक्खयरं, अजिअं निचिअं च गुणेहिं महामुणिमुसिद्धिगयं । अजिअस्स य सन्तिमहामुणिणो वि अ संतिकरं,
सययं मम निव्वुइकारणयं च नमसणयं ।।५।। आलिंगणयं ।। पुरिसा जइ दुक्खवारणं, जई अ विमग्गह सुक्खकारणं । अजिअं संतिं च भावउ, अभयकरे सरणं पवज्जहा ।।६।।
___ मागहिआ ॥
अरइ-रइ-तिमिर-विरहिअ-मुवरय-जरमणं,
सुर-असुर-गरूल-भुयगवइ-पयय-पणिबइयं । अजिअ-महमविअ सुनयनयनिउण-मभयकर, सरणभुवसरिअ भुवि-दिविजमहिअं सययमुवणमे ।।७।। संगयय ।। तं च जिणुत्तममुत्तमनित्तम-सत्तधरं,
अजव-मद्दव खन्ति विभुत्ति समाहिनिहिं । संतिकरं पणमाभि दमुत्तम-तित्थयर',
संतिमुणी मम सांतसमा हेवरं दिसउ ।।८।। सीवाणयं ।।
सावत्थि पुव्वपत्थिवं च, वरहत्थिमत्थय-पसत्थ-वित्थिन्नसंथियं । थिर-सरिच्छ-वच्छ मयगल-लोलायमाणवरगन्धहत्थिपत्थाणपत्थियं संथवारिहं । हथिहत्थिबाहुं धन्त कणग-रुअग-निरुवहय पिंजर, पवरलक्खणो वचिय सोमचारु-रूवं, सुइसुहमणाभिरामपरम
रमणिज्जवर देव-दुंदुहि-निनाय महुरयरसुहगिर ॥९॥ वेट्टउ ।। अजिअं जिआरिगणं, जिअसव्वभयं भवोहरिउं । पणमामि अहं पयउ, पावं पसमेउ मे भयवं ॥१०॥ रासालुद्धउ॥
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