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( ६५ )
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स० बेठो नथी नवी बेस - सेरे :
शाश्वत लोक खड़े पुरुष के आकार का है, उसे लोग प्रकाश में पुरुषाकार कह कर संबोधित करते हैं, वह न कभी बैठा है, न कभी बैठेगा |
स० अर्ध गगन वचे ते रहे रे :
उर्ध्व, अधो, तिरछी सभी दिशाओं में यह अलोक है, मध्य में लोक है अतः अनन्त प्रदेश आकाश के मध्य में लोक स्थित है ।
स० मांकडे माझन घेरीऊं रे ॥५॥ :
भव्य जीव देव त्रियंच आवि गति प्राप्त किये रहते हैं, उन्हें माझन कहते हैं, उन्हें कंदर्प रूपी मकड़ी ने संसार में घेर रखा है । मुक्ति में नहीं जाने देते ।
स० उंदरे मेरु हलावीओ रे :
पंच महाव्रत धारी मुनि को कभी संज्वलन का उदय हो तो अतिचार रूपी चूहा लग जाय तो वह माँच - महाव्रत रूपी मेरू को हिला सकता है और संज्वलन कषायोदय रूपी चूहा लग जाय तो उत्तर गुणों की विराधना करें ।
स० सुरज अजवालु नवि करे रे :
एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक सभी संसारी जीवों को तिरोहित भाव से केवल ज्ञान है, किंतु इस वीर भाव के प्रकट हुए बिना आत्मा में प्रकाश नहीं होता क्योंकि केवलज्ञान ही सूर्य है ।
स० लघु बंध बत्रीस गया रे :
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