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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६ ) पेट है किंतु उसको मलसूत्र नहीं होता। पंडित कहते हैं कि उसकी आधी कमर पर कंदोरा बंधा हैं ।।४।। सुधनहर्ष पंडित कहते हैं कि यदि आम समर्थ हैं तो इसका अर्थ करिये, और मैं कुछ भी वस्तु नही माँगता ।।५।। हरियाली ६ एक नगर ऊँचुं अछे, पालि नीची जोए । एक वर्ण तहमा अछ, नवि बीजो कोए ॥१॥एक०॥ साहमा पाँच जणा गया, तस आवत जाणि । तेणे आदर बहुलो करी, धरि आण्यो ताणि ॥२॥एक०॥ पाछो जइ ते नवि सके, तिणि नगर प्रधाने । बीजो तिहां आवी रहे, तेहने अभिधाने ॥३॥एक०॥ आव्यो तेहने प्राहुणे, बहु वाध्यो नेह । सर्व कुटुंब खुशी थयुं, भले प्राव्यो एह ॥४॥एक.।। धनहर्ष पंडित इम भणे, ते कवण कहोजे । जस सेवा महिमा थकी, बहु बुद्धि लहोजे ॥५॥एक.॥ हिंदी शब्दार्थ : एक नगर ऊँचा है किंतु उसकी पाल नीची दिखाई देती है, उसमें एक रंग है, दूसरा कोई नहीं है ।।१।। उसे आती देखकर सामने पाँच व्यक्ति गये, उसका बहुत आदर कर उसे ताज कर घर ले आये ।।२।। वह नगर का प्रधान है, वह वापस नहीं जा सकता, उसके अभिधान से दूसरा वहाँ आकर रहता है ।।३।। उसको देखने आया तो बहुत स्नेह बढ़ गया । सारा कुटुब प्रसन्न हुआ, अच्छा हुआ कि यह आ गया For Private And Personal Use Only
SR No.008508
Book TitleAdhyatmik Hariyali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherNarpatsinh Lodha
Publication Year1955
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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