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बेठो नथी नवि बेससे रे स., अधर गगन विच ते रहे रे ।। स . ।।५॥ माकड महाजन घेरीयो रेस, उंदरे मेरु हलावीयोरे । स. । सूरज अजवालुं नवि करे रे स., लघु बंधव बत्रीस गयारे ॥ स ॥ ६ ॥ शोके घडी नही बेनडी रे स., शामलो हंस में पेखीयो रे। स. । काट बल्यो कंचन गिरि रेस, अंजन गिरिउ जला थयारे ॥ स . ॥७॥ वयर स्वामी सुता पारणे रे स., श्राविका गावे हुलडा ज्ञे । स. । मोटा अर्थ ते कहेजो रे स., श्री शुभवारना वालडारे ॥स. ॥८॥ हिंदी शब्दार्थ :
हे सखी ! मैंने कौतुक देखा, साधु को तालाब में स्नान करते देखा । नाक से सौंदर्य देखते और आँख से रस का स्वाद लेते देखा ॥ १ ॥ मुनि को नारी से रमण करते देखा, स्त्री को अपने पति को झुलते देखा । एक स्त्री के कई पति देखे, फिर भी वह स्त्री सदा जवान रहती है || २ || वेश्या, विलुब्ध और केवली, आँख बिना बहुत देखते हैं । मुनि रथ में बैठ कर चलते हैं, हाथ भर जल में हाथी को डूबते देखा है || ३ || कुतिया ने केसरी सिंह को मारा । प्यासा है फिर भी पानी नहीं पीता । बिना पैर के ही मार्ग में चल रहा है । स्त्री नपुंसक से भोग कर रही है ||४|| गधे के पीठ पर अंबाडी रखी है । एक पुरुष नित्य खड़ा रहता है, कभी बैठना नहीं, न कभी बैठेगा, वह आकाश में अधर रहता है || ५ || मकड़ी ने महाजन को घेर लिया है और चूहे ने मेरू को हिला दिया है। सूर्य प्रकाश नहीं कर रहा है, बत्तीस छोटे भाई चले गये हैं || ६ || बहिन को शौक ने नहीं बनाया है, मैंने काले हँस को देखा है । कंजनगिरि पर जंग लग गया है, अंजनगिरि उजले हो गये हैं ||७|| वयरस्वामी झूले में सो रहे हैं और श्राविका हालरिया गा रही है । हे शुभवीर के प्यारे ! इस पद्य का अर्थ करिये ॥ ८ ॥
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