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________________ मायादि गणित तीन नाड़ियोंकी रेखावाला सर्पाकार रूप नौ भागकी वक्र आकृतिबाला एक चक्र बनाना । उस वक्राकृतिके एक एक भागमें अनुक्रमसे अश्विन्यादि तीन तीन नक्षत्रोंके युगलको सीधी पंक्ति में वेधना ( लिखना ) इस तरह नौ सर्पाग भागमें सत्तावीस नक्षत्रों लिखना । इस सर्पाकार चक्र में वर और कन्याका नक्षत्र एक नाडीमें आवे तो मृत्यु होती है इसी लिये नक्षत्र अंशको तजना । स्वामि सेषक, घर और मालिक राजा और नगर - एक नाडी में उसका वेध हो तो सुखदायक समझना । ३१-३२-३३ इति नाडीवेध अङ्ग ॥ ११ ॥ १२. अधिपति — गेहस्योदयकं । क्षेत्रफलेन गुणयेद्बुधः अष्टभिस्तु हरेच्छेषं शुभः सोऽधिपतिः समः ॥ ३४ ॥ विकृतः कर्णकचैवं धूमदो वितथस्वरः विडालो दुन्दुभिश्चैव दान्तः कान्तोऽधिनायकः ॥ ३५ ॥ 電 બુદ્ધિમાન શિલ્પીએ ઘરની ઉભણીના અંકને ક્ષેત્રફળે ગુણનાં જે અંક આવે તેને આઠે ભાગતાં જે શેષ રહે તે અધિપતિ જાણવા. તેમાં સમ–એકી અધિપતિ શુભ જાણવા. અને એકી અંકને અધિપતિ નેષ્ઠ જાણવા. ૧ વિકૃત ૨ કર્ણાંક ૩ ધૂમ્રક ૪ વિતથસ્વર ૫ ખિડાલ ૬ ક્રુન્નુભિ ૭ દાંત અને ૮ કાંત એ આડ અધિપતિનાં નામ જાણવાં. ૩૪-૩૫ बुद्धिमान शिल्पीको घरके उदयके अंकको क्षेत्रफलसे गुनते जो अंक आवे उसे आठसे भागते जो शेष रहे उसे अधिपति जानना चाहिये । उसमें सम अधिपति शुभ जानना । और विषम अंकके अधिपतिको नेष्ट समझना । १. विकृत २ कर्णक ३ धूम्रन ४ वितथस्वर ५ बिडाल ६ दुन्दुभि ७ दांत और ८ कान्त, ये आठ अधिपतिके नाम हैं । ३४-३५. मतांन्तर— यदायव्यय संयोगे यदैक्यं वसुभिर्भजेत् शेष स्त्वधिपतिः केचिन्विषमः स भयावहः ॥ ३६ ॥ અધિપતિનુ ગણિત કરવાના બીજો મત આય અને વ્યયના અંકનો સરવાળા કરી તેને આડે ભાગતાં શેષ રહે તે અધિપતિ જાણવા. ( અધિપતિમા વિષમ એકી અંક હાય તે ભય ઉત્પન્ન કરે એકી સમ શુભ જાણવા. ) ૩૬ अधिपतिका गणित करने का दूसरा मत - आय और व्ययके अंकका मिलान कर उसे आटसे विभाजित करते जो शेष रहे उसे अधिपति समझना । अधिपतिका विषम अंक भय उत्पन्न करे । सम अंक शुभ समझना । ३६ इत्याधिपति अङ्ग बारहवाँ ।। १२ ।।
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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